चतुर
पक्षी कौआ
अब तक कौओं पर कई तरह की रिसर्च
की जा चुकी है, लेकिन अभी भी कौओं के रहस्यों को पूरी तरह से जान पाने में सफलता
नहीं मिली है। पूरी दुनिया में कौओं की 45 प्रजातियां पाई जाती हैं। तोते के
बाद कौए के मस्तिष्क का साइज सबसे बड़ा होता है। भारत के साथ-साथ विदेशों में भी
कौए को लेकर धार्मिक मान्यताएं भी है। विदेशों में कौए को बुराई का प्रतीक माना
जाता है
कौआ और उसके परिजन बुद्धिमान और
शोर मचाने वाले पक्षियों में गिने जाते हैं। ये अक्सर झुंड बनाकर रहते हैं। ये
उत्तरी गोलार्ध में लगभग हर जगह पाये जाते हैं। लगभग सभी जगहों में ये पेड़ों और
खेतों के आसपास मिलते हैं। कौओं की कुछ प्रजातियां बगीचों और घरों के पिछवाड़े में
रहना पसंद करती हैं। जहां तक इनके जीवन जीने के ढंग की बात है तो उसे किसी एक
खांचे में नहीं फिट किया जा सकता। अलग-अलग जगहों में कौए अलग-अलग किस्म से जीते
हैं। यही बात इनके भोजन के संबंध में भी कही जा सकती है। कौओं के भोजन की सूची
बहुत बड़ी है। यह कुछ भी खा सकते हैं जो हानिकारक न हो। यहां तक कि छोटी-छोटी
चिड़ियों को भी मौका मिलने पर चट कर जाते हैं। पूरी दुनिया में लगभग 45 प्रजाति के कौए पाए जाते हैं।
ज्यादातर कौए काले रंग के होते हैं। लेकिन कौओं की कुछ प्रजातियां चमकीले और
आकर्षक काले रंग की भी होती है। कौओं को गाना-गाने वाले पक्षियों के वर्ग में रखा
गया है । लेकिन इनकी आवाज कर्कश होती है। इनमें एक-दूसरे के साथ कम्युनिकेट करने
की जबर्दस्त क्षमता होती है। कौओं को मनुष्यों के आसपास रहना अच्छा लगता है। जहां
तक विशेष रूप से भारतीय कौओं का सवाल है तो ये दो प्रकार के होते हैं। एक साधारण
घरेलू कौआ जिसका बदन काला और गर्दन स्लेटी रंग की होती है। दूसरा जंगली कौआ। यह
घरेलू कौवे से बड़ा और एकदम काला होता है। कौआ यूं तो लगभग सभी प्रकार की चीजें
खाता है परंतु उसे वे चीजें ज्यादा भाती हैं जो मनुष्य खाते हैं। यह बात खासतौर पर
घरेलू कौओं पर लागू होती है। इसीलिए घरेलू कौआ दिनभर घरों के इर्द-गिर्द या आंगन
में ही मंडराया करते हैं। कौआ अपना घोंसला ऊंचे पे ड़ों पर ऐसे स्थान में बनाता है
जहां से दो शाखायें फूटती हों। इसे बनाने में वह तिनकों, टहनियों, रेशों, पंखों इत्यादि का इस्तेमाल करता
है। कभी-कभी तार के छोटे-छोटे टुकड़े भी वह काम में लेता है। हालांकि उसका घोंसला
बाहर से देखने में भद्दा लगता है लेकिन अंदर से वह बहुत साफ और आरामदेह होता है।
मादा कौआ एक समय में चार या पांच अंडे देती है। अंडे हल्के नीले-हरे रंग के होते
हैं। जिन पर भूरे रंग के निशान होते हैं। नर और मादा दोनों मिलकर अंडों को सेते
हैं और बच्चों की देखभाल बड़ी सावधानी से करते हैं। कौआ लगभग 63 सेमी. लम्बा होता है। वैसे तो
लगभग पूरी दुनिया में काले कौए ही पाये जाते हैं लेकिन अमेरिका में ‘ब्लू जाय’ नाम का एक निलक्षर कौआ भी मिलता
है जो 28 सेमी.
लम्बा होता है। यह कौओं के खानदान की सबसे सुंदर और सबसे छोटी प्रजाति है। यह
पूर्वी उत्तरी अमरीका में पाया जाता है। भारत में औ र एशिया के ज्यादातर भागों में
जो कौआ पाया जाता है वह है कैरियन क्रो। यूरोप के भी अधिकतर हिस्सों में यही कौआ
पाया जाता है। कैरियन क्रो थोड़ा रफ और ज्यादा ही कांव-कांव करने वाला होता है।
कौए में इन्सान की तरह पारिवारिक समूह में रहने की आदत होती है। रैविंस, जाय और मैगपाइज प्रजाति के कौए
जोड़े बनाकर रहते हैं। कौओं की कई प्रजातियां तो झुंड में ही रहना पसंद करती हैं।
रहन-सहन का उनका यह ढंग उन्हें तमाम तरह के खतरों से बचाता है। कौए सूरज डूबने से
पहले अपने घोंसले में आ जाते हैं और सूरज की किरण निकलने से अपना घोंसला छोड़ देते
हैं। इनके इन सामूहिक घोंसलों को रूकेरीज कहते हैं। दिलचस्प तथ्य सामान्यता एक कौए
की उम्र सात साल होती है, लेकिन कुछ
प्रजाति के कौए 14 वर्ष तक भी
जीते हैं। तोते के बाद पक्षियों में कौए के मस्तिष्क का आकार सबसे बड़ा होता है।
कौए अपनी भावना प्रकट करने में बहुत तेज होते हैं। भूख लगने पर कौआ अलग तरह की
आवाज निकालता है, जबकि खुशी
के मौके पर दूसरे तरह से ध्वनि निकालते हैं। कौओं की मैमोरी बहुत तेज होती है।
अक्सर कौए अपना भोजन कहीं छिपा देते हैं, लेकिन जब उन्हें भूख लगती है तो
वे तुरंत छिपाई हुई जगह से अपना भोजन खोज लेते हैं। मनुष्यों की तरह कौए भी धूप से
ही विटामिन डी लेते हैं। धूप में अक्सर कौए पंख फैला कर लेट जाते हैं ताकि उन्हें
ठीक से विटामिन डी मिल सके। चिंपैंजी और डॉल्फिन की तरह कौए की भी गिनती होशियार
जीवों में होती है। विदेशों में कौए को लेकर धार्मिक मान्यताएं भी है। फ्रांस में
लोग कौए को बुरी आत्मा का प्रतीक मानते हैं, वहीं स्वीडन में रात के समय कौए
के बोलने पर लोग मानते हैं कि जिन लोगों का धार्मिक रीति रिवाज से अंतिम संस्कार
नहीं हुआ है वे कौए के रूप में आकर बोलते हैं।