Sunday, February 1, 2015

महान पुस्तक

एक बार राजा कृष्णदेव राय के दरबार में एक महान विद्वान आया। उसने वहां दरबार में उपस्थित सभी विद्वानों को चुनौती दी कि पूरे विश्व में उसके समान कोई बुद्धिमान व विद्वान नहीं है। उसने दरबार में उपस्थित सभी दरबारियों से कहा कि यदि उनमें से कोई चाहे तो उसके साथ किसी भी विषय पर वाद-विवाद कर सकता है। परन्तु कोई भी दरबारी उससे वाद-विवाद करने का साहस न कर सका। अंत में सभी दरबारी सहायता के लिए तेनाली राम के पास गए। तेनाली राम ने उन्हें सहायता का आश्वासन दिया और दरबार में जाकर विद्वान की चुनौती स्वीकार कर ली। दोनों के बीच वाद-विवाद का दिन भी निश्चित कर दिया गया। निश्चित दिन तेनाली राम एक विद्वान पंडित के रूप में दरबार पहुंचा। उसने अपने एक हाथ में एक बड़ा सा गट्ठर ले रखा था, जो देखने में भारी पुस्तकों के गट्ठर के समान लग रहा था। शीघ्र ही वह महान विद्वान भी दरबार में आकर तेनाली राम के सामने बैठ गया। पंडित रूपी तेनाली राम ने राजा को सिर झुकाकर पण्राम किया और गट्ठर को अपने और विद्वान के बीच में रख दिया, तत्पश्चात दोनों वाद-विवाद के लिए बैठ गए। राजा जानते थे कि पंडित का रूप धरे तेनाली राम के मस्तिष्क में अवश्य ही कोई योजना चल रही होगी इसलिए वह पूरी तरह आास्त थे। अब राजा ने वाद-विवाद आरंभ करने का आदेश दिया। पंडित के रूप में तेनाली राम पहले अपने स्थान पर खड़े होकर बोले, ‘विद्वान महाशय! मैंने आपके विषय में बहुत कुछ सुना है। आप जैसे महान विद्वान के लिए मैं एक महान तथा महत्वपूर्ण पुस्तक लाया हूं, जिस पर हम लोग वादिववाद करेंगे।
महाशय! कृपया मुझे इस पुस्तक का नाम बताइए।
विद्वान ने कहा। तेनाली राम बोले, ‘विद्वान महाशय, पुस्तक का नाम है, ‘तिलक्षता महिशा बंधन। विद्वान हैरान हो गया। अपने पूरे जीवन में उसने इस नाम की कोई पुस्तक न तो सुनी थी न ही पढ़ी थी। वह घबरा गया कि बिना पढ़ी सुनी हुई पुस्तक के विषय में वह कैसे वाद-विवाद करेगा। फिर भी वह बोला, ‘अरे, यह तो बहुत ही उच्च कोटि की पुस्तक है। इस पर वाद-विवाद करने में बहुत ही आनंद आएगा परन्तु आज यह वाद-विवाद रहने दिया जाए। मेरा मन भी कुछ उद्दिग्न है और इसके कुछ महत्वपूर्ण तथ्यों को मैं भूल भी गया हूं। कल प्रात: स्वस्थ व स्वच्छ मस्तिष्क के साथ हम वाद-विवाद करेगें।
तेनाली राम के अनुसार, वह विद्वान तो आज के वादिववाद के लिए पिछले कई दिनों से प्रतीक्षा कर रहा था परन्तु अतिथि की इच्छा का ध्यान रखना तेनाली का कर्त्तव्य था। इसलिए वह सरलता से मान गया। परन्तु वाद-विवाद में हारने के भय से वह विद्वान नगर छोड़कर भाग गया। अगले दिन प्रात: जब विद्वान शाही दरबार में उपस्थित नहीं हुआ, तो तेनाली राम बोला, ‘महाराज, वह विद्वान अब नहीं आएगा। वाद-विवाद में हार जाने के भय से लगता है, वह नगर छोड़कर चला गया है।
तेनाली, वाद-विवाद के लिये लाई गई उस अनोखी पुस्तक के विषय में कुछ बताओ जिससे कि डर कर वह विद्वान भाग गया?’ राजा ने पूछा। महाराज, वास्तव में, ऐसी कोई भी पुस्तक नहीं है। मैंने ही उसका यह नाम रखा था। तिलक्षता महिशा बंधन‘, इसमें तिलक्षता का अर्थ है, ‘शीशम की सूखी लकड़ियांऔर महिशा बंधन का अर्थ है, ‘वह रस्सी जिससे भैंसों को बांधा जाता है। मेरे हाथ में वह गट्ठर वास्तव में शीशम की सूखी लकड़ियों का था, जो कि भैंस को बांधने वाली रस्सी से बंधी थीं। उसे मैंने मलमल के कपड़े में इस तरह लपेट दिया था ताकी वह देखने में पुस्तक जैसी लगे।तेनाली राम की बुद्धिमता देखकर राजा व दरबारी अपनी हंसी नहीं रोक पाए। राजा ने प्रसन्न होकर तेनाली राम को ढेर सारे पुरस्कार दिया।


prathamik shikshak

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