मुर्गी का दाम
शाश्वतीबहुत समय पहले एक नगर में एक न्यायाधीश रहता था, जो किसी भी मामले में सही फैसला सुनाने और हमेशा सच का साथ देने के लिए जाना जाता था।
एक दिन न्यायाधीश नगर के बाजार से
गुजर रहा था तो उसने देखा कि मुर्गियों की एक दुकान के सामने लोगों की भीड़ लगी
हुई है। लोगों से पूछताछ करने पर न्यायाधीश को पता चला कि एक किसान के अनाज की
बोरी गलती से मुर्गियों के ऊपर गिर गई और इस दुर्घटना में एक मुर्गी की मौत हो गई।
वो मुर्गी बहुत छोटी थी और उसकी कीमत सिर्फ 10
पैसे से ज्यादा नहीं होगी।
पर मुर्गियों की दुकान का मालिक उस
किसान के पीछे पड़ गया था और वह अपनी मरी हुई मुर्गी के बदले किसान से 200 पैसे यानी 2 रुपए
मांग रहा था। उस दुकानदार की दलील थी कि दो साल के भीतर उसकी मुर्गी अनाज और दाने
खाकर मोटी-तगड़ी हो जाती और उस समय उसकी कीमत उतनी ही होती, जितनी
कि वह किसान से मांग कर रहा है।
वहां इकट्ठा भीड़ में से किसी ने उस
न्यायाधीश को पहचान लिया और उसके लिए तुरंत रास्ता बनाने लगा। न्यायाधीश को देखते
ही मुर्गी के मालिक ने किसान का कॉलर छोड़ और उनके पैर पकड़कर कहने लगा, ‘न्यायाधीश महोदय, कृपया न्याय कीजिए। इस आदमी ने अपनी लापरवाही से मेरी उस मुर्गी को जान से
मार दिया, जिसे बेचकर आज से दो साल बाद मुझे 2 रुपए मिलते।’
डर के मारे किसान के मुंह से एक
शब्द भी नहीं निकल पा रहा था। वहां इकट्ठी भीड़ में से कोई भी यह नहीं समझ पा रहा
था कि किसान असल में कह क्या रहा है।
न्यायाधीश ने कहा कि इस मरी हुई
मुर्गी की कीमत 2 रुपए रखी गई है और
मुझे भी लगता है कि तुमको इस मुर्गी की इतनी कीमत अदा करनी चाहिए। पूरी भीड़ में
सन्नाटा पसर गया। सभी ने सोचा था कि न्यायाधीश किसान के पक्ष में अपना फैसला
सुनाएंगे। पर ऐसा हुआ नहीं।
यह फैसला सुन कर उस मुर्गी के मालिक
की खुशी की कोई सीमा नहीं थी। वह न्यायाधीश को धन्यवाद देते हुए नहीं थक रहा था।
अपनी दोनों हथेलियों को आपस में रगड़ते हुए उसने न्यायाधीश से कहा, ‘मैंने आज तक लोगों से सुना था कि आप
सही और निष्पक्ष निर्णय देते हैं। पर मैं आज कहता हूं कि आपसे बेहतर निर्णय कोई और
दे ही नहीं सकता।’
न्यायाधीश
ने मुस्कुराते हुए कहा,
‘कानून हमेशा निष्पक्ष होता है।’
‘अच्छा अब ये बताओ कि मुर्गी एक साल
में कितना अनाज खाती है?’
‘लगभग, आधी
बोरी।’
मुर्गियों के दुकान के मालिक ने कहा।
‘मतलब, जो
मुर्गी अभी-अभी मरी है, वह दो साल में अनाज की पूरी की पूरी
बोरी खा जाती,
जिसके नीचे दबकर वह मरी है। तो अब तुम इस
किसान को अनाज की वह बोरी दे दो,
जो तुमने अपनी इस मुर्गी के
लिए इकट्ठा करके रखी थी।’ न्यायाधीश ने कहा।
मुर्गी के मालिक का चेहरा न्यायाधीश की यह
बात सुनते ही पीला पड़ गया,
क्योंकि
एक बोरी अनाज की कीमत 2 रुपए से ज्यादा होती।
वहां इकट्ठी भीड़ द्वारा मजाक उड़ाने पर
आखिरकार उस लालची दुकानदार ने हार मान ली
और न्यायाधीश से कहा कि उसे किसान से एक
भी पैसा नहीं चाहिए। और वह चुपचाप अपनी दुकान के भीतर चला गया।
साभार
हिंदुस्तान ( नंदन )