बच्चों
को दें खेलने की आजादी
‘बच्चों
के नन्हे हाथों को चांद-सितारे छूने दो,
चार
किताबें पढ़कर ये भी हम जैसे हो जाएंगे।’
महज
यह एक शेर नहीं है, बल्कि
इसमें बच्चों के संपूर्ण विकास का फलसफा छुपा हुआ है। आमतौर पर पेरेंट्स अपने
बच्चों के खेलकूद में कोई खास दिलचस्पी नहीं दिखाते। उनको लगता है कि इससे बच्चा
पढ़ाई नहीं कर पाएगा या बच्चे की पढ़ाई प्रभावित होगी। जबकि सच यह है कि खेलकूद
बच्चों के शारीरिक, मानसिक
तथा भावनात्मक संबंधों के विकास में खास जिम्मेदारी निभाते हैं। छोटे-छोटे खिलौने
जो कभी बच्चे खुद ही मिट्टी से बनाते थे, वे भी इलेक्ट्रॉनिक या
रिमोट से चलने वाले हो गए हैं। कहा जाता है कि स्वस्थ शरीर में स्वस्थ मस्तिष्क
का वास होता है। ऐसे में अगर हम बच्चों के शरीर को स्वस्थ नहीं बना पाए, तो वे अपनी शैक्षणिक
क्षमताओं का इस्तेमाल भी बहुत अच्छी तरह नहीं कर पाएंगे। शोध बताते हैं कि अगर
बच्चों को कुछ पल खेलने के लिए नहीं मिलते हैं, तो उनके काम करने की
गति भी मंद पड़ जाती है। साफ है कि बच्चों को खेल सुविधाएं न देना, उनकी जिंदगी से
खिलवाड़ करना ही है। मोबाइल, व्हाट्सऐप और फेसबुक के माध्यम से बच्चे
अपनी मनोरंजन की बहुत-सी जरूरतें पूरी तो कर लेते हैं, पर इससे शारीरिक
गतिविधियां कम हो जाती हैं। शायद यही वजह हैं कि आज छोटे बच्चों तक में गर्दन, जोड़ाें के दर्द, मोटापा, चिंता और निराशा जैसे
लक्षण तेजी से पनपने लगे हैं। बाल मनोचिकित्सकों का भी मानना है कि इलेक्ट्रॉनिक
खिलौने बच्चों की कल्पनाशीलता एवं रचनात्मकता को रोक देते हैं। इसलिए पढ़ाई के
साथ-साथ बच्चों को खेलने की पर्याप्त सुविधा भी देना जरूरी है। उम्र के हिसाब से अपने बच्चों के लिए सही खेलों का चयन करके उनके बचपन को
बनाए रखने में सहयोग करें।
संपूर्ण
शरीर का विकास
जब
चलने के बाद बच्चों की दौड़ने की बारी आती है, तो इस उम्र में साइकिल
के अलावा ऐसे खेल बच्चों को खेलने दीजिए, जिसमें बच्चे झुकना, चढ़ना, धक्का
देना, खींचना जैसे काम भी
करें, ताकि
उनकी मांसपेशियां मजबूत हों। फुटबॉल, रिंग वगैरह खेल भी
अच्छे होते हैं। संपूर्ण शरीर का विकास तथा मजबूती इसी प्रकार के खेलों से आती है।
प्रकृति
से लगाव
बगीचे
तथा मैदानों में खेलना बच्चों को सबसे बढ़िया लगता है। ढेर सारे हरे-भरे पेड़ों के
बीच खेलने से बच्चे प्रकृति के प्रति संवेदनशील बनते हैं। ताजा हवा बच्चे के विकास
में जहां सहयोगी है, वहीं
बागवानी की रुचि भी उन्हें कई बीमारियों से लड़ने की ताकत देती है।
दोस्ती
का दायरा बढ़ता है
प्राइमरी
स्कूल के बच्चों को भी शुरू-शुरू में समूह में रहना सिखाया जाता है। स्कूल में उसे
अपनी टिफिन से लेकर कई चीजों को शेयर करना सीखना होता है। समूह में खेलने से बच्चे
दोस्ती करना भी सीख जाते हैं। समूह में खेले गए खेल से वह खेल-खेल में ही सामाजिक
जीवन के नियम-कायदे सीखता है। वह बच्चों के साथ खेलते हुए संवाद बनाना, सामंजस्य बनाना, टीम भावना ऐसी कई
चीजें सीखता है, जो
भविष्य में उसे जीवन के कई अहम हिस्सों में काम आती हैं। कुल मिलाकर घर के कैद
माहौल से निकलकर बच्चा जब खुले में खेलता है, तो वह हर तरह से
सक्रिय हो जाता है। अगर बच्चे खेलते हुए जब पसीना बहाएंगे, तो शरीर के अंदर
बीमारियों से लड़ने आैर रोग-प्रतिरोधक क्षमता बढ़ेगी। बाहर प्रतिस्पर्धा से लड़ने
की शक्ति मिलेगी। वे एक-दूसरे से अपने सुख-दुख शेयर करना सीखते हैं। यही आदत आगे
चलकर उन्हें एक बेहतर इंसान बनाने में उनकी मदद करती है।
खेल
के जब इतने सारे फायदे हैं, तो
क्यों न बच्चों को आउटडोर खेल से रू-ब-रू करवाएं आैर उनको खेलने के लिए प्रेरित
करें। इससे उसका मानसिक विकास भी अच्छा होगा।
माना
अच्छी पढ़ाई और अच्छा करियर बच्चों के लिए बहुत जरूरी है, लेकिन सारी जरूरतों को
इसी तक सीमित नहीं किया जा सकता। पढ़ाई के साथ-साथ शारीरिक एक्टिविटी भी जरूरी है, जो खेल से ही संभव है।
रेणू जैन
साभार अमरउजाला
रूपायन