Monday, November 25, 2013


== परीक्षाएं ही नहीं, महत्वपूर्ण होते हैं प्रश्नपत्र भी ==

नवभारत टाइम्स | Nov 25, 2013, 01.00AM IST

सीताराम गुप्ता

हमारे यहां पढ़ाई का स्तर जो भी हो लेकिन प्रश्नपत्रों का स्तर संतोषजनक नहीं कहा जा सकता। प्रश्नपत्र प्रायः घटिया कागज पर प्रिंट किए जाते हैं। उनका प्रिंट भी अच्छा और स्पष्ट नहीं होता। ऐसे में प्रश्नपत्र को देखने भर से ऊब होने लगती है। प्रश्न पत्रों में रंगों का एकदम अभाव देखने को मिलता है। क्या रंग-बिरंगे सुंदर प्रश्नपत्र नहीं छपवाए जा सकते? क्या उनमें रंगीन चित्र नहीं हो सकते? पुस्तकें ही नहीं प्रश्नपत्र भी हमारे ज्ञान और जानकारी में वृद्धि करते हैं। प्रश्नपत्र हमारी जिज्ञासा को बढ़ाने में भी सहायक होते हैं। प्रश्नपत्र पढ़ने के बाद हमें जिन प्रश्नों के उत्तर नहीं भी आते तो भी हम उनके उत्तर खोजने का प्रयास करते हैं। यदि परीक्षा में हम ठीक उत्तर नहीं लिख पाते तो भी जब तक हमें सही उत्तर नहीं मिल जाता, हम चैन से नहीं बैठ पाते। ऐसे में प्रश्नपत्रों का महत्त्व बहुत बढ़ जाता है इसलिए प्रश्नों का चयन बहुत ही सावधानी और सूझबूझ से करना चाहिए। प्रश्न उपयोगी और सार्थक हों।

प्रश्नों की भाषा भी आसानी से समझ में आने लायक होनी चाहिए। जब प्रश्न ही नहीं समझ में आएगा तो उसका उत्तर क्या खाक लिख पाएंगे? भाषा के साथ-साथ प्रश्नपत्र में वर्तनी संबंधी अशुद्धियां भी प्रायः देखने में आती हैं। क्योंकि प्रश्नपत्र हल करने वाला प्रश्नपत्र से भी सीख रहा है, कुछ ज्ञान अर्जित कर रहा है इसलिए उसकी भाषा और वर्तनी का विशेष ध्यान रखना भी आवश्यक है। प्रश्नपत्रों का रोचक होना भी अनिवार्य है। कुछ प्रश्न ऐसे भी होने चाहिए जिनका उत्तर लिखने में छात्र खुशी महसूस करें।

भाषाओं के प्रश्नपत्रों में आजकल अपठित गद्यांश व पद्यांश (कॉम्प्रीहेन्शन) पर्याप्त मात्रा में होते हैं। एक परीक्षार्थी गद्यांश अथवा पद्यांश को जितने ध्यान से पढ़ता है उतने ध्यान से तो वह अपनी पाठ्य पुस्तकों को भी नहीं पढ़ता इसिलए इनके माध्यम से उसे न केवल शिक्षाप्रद एवं प्रेरक कथा-कहानियों से अवगत कराया जा सकता है बल्कि विभिन्न विषयों जैसे विज्ञान, भूगोल, इतिहास, राजनीति, कला एवं संस्कृति, धर्म व दर्शन, पर्यावरण संरक्षण आदि का ज्ञान भी आसानी से दिया जा सकता है।

 
विद्यार्थियों को नैतिक शिक्षा देने के लिए इस प्रकार के प्रश्नपत्र उपयोगी हो सकते हैं। इसलिए कॉम्प्रीहेन्शन में ऐसे अंशों का चुनाव किया जाना चाहिए जो हर दृष्टि से उपयोगी हों। उनकी भाषा बेशक सरल हो लेकिन वे हों उपयोगी जानकारी लिए। इनका चयन अच्छे लेखकों के संस्मरणों, निबंधों, कहानियों और अन्य अच्छी रचनाओं से ही किया जाना चाहिए। कविताओं के अंशों का चयन भी अच्छे कवियों की श्रेष्ठ रचनाओं से ही किया जाना अनिवार्य है। कविता का वह हिस्सा किसी एक भाव अथवा विचार को प्रकट करने में सक्षम हो क्योंकि अधूरी कविता को पूरी तरह से समझना मुश्किल होता है।

जिन प्रश्नों के उत्तर विवादास्पद हों अथवा जिनके कई संभावित उत्तर हों ऐसे प्रश्नों से भी बचा जाना चाहिए। इससे विद्यार्थी का सही मूल्यांकन नहीं हो पाता। अनेक विकल्पों वाले प्रश्नों के विकल्प भी सोच-समझकर तैयार करने चाहिए। अगर ऐसे प्रश्नों के ऑप्शंस में अंतर स्पष्ट नहीं होगा तो भी उनका सही उत्तर देने में परेशानी होगी। ऐसे प्रश्नों की संख्या भी सीमित होनी चाहिए क्योंकि कई बार सही उत्तर मालूम न होने पर भी परीक्षार्थी अथवा विद्यार्थी अंदाज से किसी भी विकल्प को चुन लेते हैं। संयोग से कुछ प्रश्नों के उत्तर ठीक हो जाते हैं। प्रश्नों के उत्तर कम या अधिक ठीक होने, दोनों की संभावनाएं बनी रहती हैं। इसलिए संक्षिप्त उत्तर वाले ऑब्जेक्टिव प्रश्न अधिक पूछे जाने चाहिए। कॉम्प्रीहेन्शन से अनेक ऑप्शंस वाले प्रश्न देना तो अधिक सही नहीं लगता। इसमें केवल संक्षिप्त उत्तर वाले प्रश्न ही पूछे जाने चाहिए।

 

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