जेब्रा में खास मकसद से
होती हैं धारियां
यद्यपि जेब्रा घोड़ा परिवार का सदस्य है किन्तु वह अपने शरीर
पर बनी धारियों के कारण अपनी अलग पहचान रखता है। एक जेब्रा की धारियों का पैटर्न
दूसरे जेब्रा की धारियों से सर्वथा भिन्न होता है। जेब्रा के शरीर में पेट के
अलावा सभी स्थानों पर काली सफेद पट्टियां या धारियां होती हैं। यहां तक कि उसकी
गर्दन के बालों में भी ये पट्टियां होती है। नवजात शिशु की धारियां भूरे रंग की
होती है । जेब्रा की धारियां ही उसका सुरक्षा कवच है। शेर इनका सबसे बड़ा दुश्मन
है। जब जेब्रा समूह में रहते हैं तो शेर के लिए किसी एक जेब्रा को निशाना बनना
बड़ा मुश्किल है क्योंकि इन धारियों की वजह से उसकी आंखें चौंधिया जाती हैं। इसके
अलावा झुंड में शामिल जेब्राओं की धारियां आपस में घालमेल कर देती है जिसकी वजह से
शेर को किसी एक जेब्रा के सिर, पैर का पता नहीं चल पाता। जेब्रा की धारियां उन्हें अपने झुंड
की पहचान कराती है। इन्हीं के कारण झुंड के सदस्य एक दूसरे को पहचानते हैं। आमतौर
पर इनके झुंड में 16 से 20 सदस्य होते हैं। वैसे तो जेब्रा
झुंड में ही रहते हैं लेकिन कभी कभी वयस्क नर स्वतंत्र रूप से भी विचरण करते हैं।
इसके अलावा कभी-कभी झुंड का कोई सदस्य रास्ता भटक जाता है या खो जाता है, तो ऐसे में झुंड के सदस्य उसे
खोजते हैं। जेब्राओं में भाईचारा भी बहुत होता है। यही कारण है कि जब चारा ज्यादा
मात्रा में उपलब्ध होता है तो वहां इनके अनेक झुंड एकत्रित होकर उसे चरते हैं।
इनके झुंड दो तरह के होते है। एक झुंड में अवयस्क नर होते हैं, जबकि दूसरे झुं ड में एक वयस्क नर
तथा उसके साथ 6 से 8 मादाएं तथा उनके बच्चे होते हैं।
झुंड का सरदार बदलता रहता है। ऐसा तब होता है जब झुंड का मुखिया या तो बूढ़ा हो
जाता है या फिर कोई दूसरे झुंड का नर उसे खदेड़ देता है। ऐसे में विजेता जेब्रा
पराजित झुंड पर अपना अधिकार जमा लेता है। जेब्राओं के झुंड की अपनी एक खासियत होती
है। जब वे भोजन पानी की खोज में निकलते हैं तो मुख्य मादा झुंड के आगे चलती है तथा
नर सबसे पीछे होते हैं। मादा के साथ उसके बच्चे होते हैं। अपने झुंड की रक्षा करने
के लिए नर सतर्क होकर चलता है ताकि कोई शत्रु झुंड पर हमला न करे। जेब्रा काफी
ताकतवर प्राणी है। संकट के समय वे सामूहिक रूप से शत्रु का मुकाबला करते हैं।
दुलत्तियां मारकर अथवा काटकर वह अपने शत्रु से लोहा लेता है। किसी समय जेब्रा की
चार प्रजातियां थी, लेकिन आज
इनकी तीन प्रजातियां ही बची हैं। सामान्य रूप से पाई जाने वाली प्रजाति को मैदानी
जेब्रा कहा जाता है। यह प्रजाति इथियोपिया के दक्षिण में मिलती है। इसकी ग्रेवी
नामक दूसरी प्रजाति सोमालिया पाई जाती है। तीसरी जाति को इस जे ब्रा या पहाड़ी
जेब्रा कहते हैं। यह नामीबिया की पहाड़ियों में पाया जाता है। चौथी प्रजाति लुप्त
हो चुकी है। प्रजातियों के अनुसार इनके रंगरूप में थोडी भिन्नता होती है जो इन्हें
दूसरी प्रजाति से अलग करती है। जेब्रा तेज दौड़ने में भी माहिर होते हैं। इनकी गति
50 किलोमीटर
प्रतिघंटा होती है। इनकी टांगें काफी लंबी होती हैं जिनकी मदद से ये न केवल तेज
दौड़ पाते हैं अपितु लंबी-लंबी छलांग भी लगाते हैं। घोड़े या गधे की भांति जेब्रा
को पालतू नहीं बनाया जा सकता। जंगल ही उन्हें अच्छा लगता है। इन्हें चिड़ियाघर में
ही देखा जा सकता है ।
डॉ. विनोद गुप्ता
साभार राष्ट्रीयसहारा