गलतियां सबसे होती हैं और हर गलती करने वाला दूसरों से माफी की उम्मीद करता है
मनुष्य गलतियों का पुतला है। इस मत से स्पष्ट है कि इंसान से त्रुटियां संभव हैं। त्रुटिहीन मानव देवता की श्रेणी में आ जाता है, परंतु वह देवता नहीं है। यदि उसकी त्रुटियों को माफ कर दिया जाए और इसके पीछे उसकी अवशता-विवशता का गहराई से निरीक्षण किया जाए, तो संभव है, वह ऐसी गलती दोबारा न दोहराए।
गलतियां सबसे होती हैं और हर गलती करने वाला दूसरों से माफी की उम्मीद करता है, परंतु विडंबना है कि कोई माफ करता नहीं है। हम औरों से अपने लिए क्षमा की चाहत रखते तो हैं, पर दूसरों को इन्हीं परिस्थितियों में पीडि़त करते हैं। गलतियों पर पीडि़त करने से व्यक्ति अंदर से टूट जाता है और टूटा हुआ व्यक्ति स्वयं औरों के लिए अत्यंत घातक होता है, क्योंकि वह पीडि़त करने वालों के प्रति तीव्र प्रतिहंसक हो जाता है और यही वजह है कि समाज में अपराधियों की संख्या बढ़ती जा रही है। गलती करने के बाद हमने कभी किसी को गले लगाना नहीं सीखा। गलती करने वाले को आत्मीयता-अपनापन देना नहीं जाना, गलतियों को कभी हमने माफ नहीं किया और इसी का परिणाम है कि समाज में प्राचीन काल से लेकर आज तक अपराधी पैदा होते रहे हैं। मानव चेतना के मर्मज्ञ मानते हैं कि बच्चा सिर्फ मन और बुद्धि लेकर ही पैदा नहीं होता, बल्कि वह चित्त लेकर भी जन्म लेता है। मन और बुद्धि तो अंतराल में विकसित होते हैं।
बच्चों और किशोरों में भावनात्मक संवेदनशीलता उफान पर होती है। बच्चे तो केवल भावनाओं से विनिर्मित होते हैं। विकासशील उम्र को इसी वजह से अत्यधिक संवेदनशील माना जाता है। यदि इस उम्र के किशोरों की गलतियों को माफ न कर, उनके कारण को न समझ कर उन्हें पीडि़त और प्रताडि़त किया जाता है, तो परिणाम अत्यंत घातक होते हैं। इसकी जिम्मेदारी माता-पिता की होती है। अभिभावकों को अपनी संतानों को गलतियों पर प्रताडि़त नहीं करना चाहिए बल्कि उन्हें प्यार से समझाना चाहिए और उन्हें सुधरने का मौका देना चाहिए। यही बात समाज में गलती करने वालों के प्रति भी करनी चाहिए। भावनाओं की तृप्ति और तुष्टि से ही व्यक्ति का समग्र विकास संभव है। इसलिए समाज में इसकी व्यवस्था करनी होगी। इस तथ्य को ध्यान में रखकर हम सभी अपने परिसर में अपनेपन का खुशनुमा माहौल पैदा करें। गलती करने वालों के प्रति अपार स्नेह की आवश्यकता है।
साभार दैनिकजागरण