Friday, January 16, 2015

क्वालिटी टाइम दें बच्चों को

आज के दौर में बच्चों की परवरिश और उनकी देखभ्भाल करना किसी चुनौती से कम नहीं है। अगर आप दोनों कामकाजी हैं तो फिर अपने ऑफिस, घरेलू कामकाज और परिवार की जरूरतों के बीच संतुलन बनाना काफी मुश्किल हो जाता है। ऐसे में जरूरी है कि आप बच्चों को क्वांटिटी टाइम देने की बजाय क्वालिटी टाइम देने की कोशिश करें। बालमनोवैज्ञानिकों का भी यही कहना है कि कामकाजी माता-पिता अपने बच्चों को क्वालिटी टाइम देकर उनकी सारी शिकायतें दूर कर सकते हैं।

ठीक नहीं डांट-फटकार

नई दिल्ली के एक स्कूल की सीनियर टीचर मालविका सिंह कहती हैं कि कामकाजी माता-पिता का ज्यादातर वक्त तो ऑफिस और घर की जरूरतों को पूरा करते हुए ही निकल जाता है। कई बार तो खुद के आराम के लिए भी थोड़ा सा समय नहीं मिल पाता, लेकिन इसका मतलब यह बिल्कुल नहीं है कि आप अपना सारा तनाव और गुस्सा बच्चों पर निकालें। नकारात्मक बातों का बच्चों पर गहरा असर होता है। कई बार गुस्से में कही गईं नकारात्मक बातें, डांट-फटकार से बच्चे आहत हो जाते हैं। कभी-कभी इससे उनके दिलो-दिमाग पर गहरा असर पड़ता है और उनके आत्मविश्वास में कमी आती है। इसलिए गुस्सा आने पर भी अपना आपा नहीं खोना चाहिए।

तुलना न करें

मुंबई में बच्चों के लिए काम करने वाले एक एनजीओ में कार्यरत सुनीता रावत का कहना है कि अपने बच्चे की तुलना किसी अन्य बच्चे से न करें। बच्चे की किसी से तुलना करने पर उसके अंदर उग्रता आती है। साथ ही उसके मन में हीनभावना भी पनप सकती है। अपने बच्चे की अन्य भाई-बहनों या अन्य बच्चों से तुलना करने पर उनके बीच मनमुटाव होने का खतरा भी बना रहता है। कारण, हर बच्चा अपने आप में खास होता है। जब आप अपने बच्चे से किसी और की तरह बनने के लिए कहती हैं तो वह खुद को दूसरों से कमतर समझने लगता है। आपके तुलना करने से बच्चा यह नहीं समझ पाता कि आप उससे क्या चाहती हैं। उसे तो बस इतना पता होता है कि आप उससे खुश नहीं है। इसलिए बेहतर होगा कि उसकी किसी से तुलना करने की बजाय उसे यह समझाएं कि वह किस तरह बेहतर बन सकता है।

ताना न मारें

कोलकाता की साइकोलॉजिकल काउंसलर अर्पिता बनर्जी का कहना है कि यदि कोई बच्चा किसी काम में असफल होता है तो भी उसकी असफलता पर ताने मारना ठीक नहीं है। बच्चों को ताने मारना ठीक उसी तरह होता है जैसे किसी के गिर जाने पर फिर से उसे धक्का दे देना। ताने बच्चों के आत्मविश्वास और उत्साह को झकझोर कर रख देते हैं। यह माता-पिता का फर्ज है कि वे बच्चों के आत्मविश्वास को बढ़ाएं और उनका सहारा बनें। ताने मारने से बच्चों और माता-पिता के बीच दूरियां बढ़ती हैं। नतीजतन धीरे-धीरे वे माता-पिता से स्कूल की कोई बात या अन्य कोई बाहरी बात भी कहने से झिझकते हैं। उन्हें लगता है कि ऐसा करने से वे फिर से मजाक के पात्र बन जाएंगे। बाल मनोवैज्ञानिकों का भी कहना है कि अगर आप अपने बच्चे पर ताने कसती हैं तो उनमें हीनभावना आती है। यदि आप अपने बच्चे से नकारात्मक शब्द बोलती हैं तो समझ लीजिए कि आप अपने बच्चे को और भी ज्यादा हीनभावना से ग्रस्त बना रही हैं।

दोस्त बनें बच्चों के

पटना की विशाखा सिन्हा का कहना है कि बच्चों और माता-पिता के बीच अनुशासन के लिहाज से थोड़ी दूरी होनी जरूरी है, लेकिन यह दूरी इतनी भी न हो कि बच्चे आपसे अपनी बात शेयर करने से भी घबड़ाएं। अगर आप अपने बच्चों को सही दिशा में आगे बढ़ाना चाहती हैं तो बच्चों के मन की बात समझना भी जरूरी है। बच्चे अपने मन की बात आपसे तभी शेयर करेंगे, जब आप उनसे दोस्ताना व्यवहार रखेंगी। बात-बात पर उनकी गलती निकालना, डांटना-फटकारना, हरदम उपदेश देने की बजाय उनकी भावनाओं और समस्याओं को समझने की कोशिश करें। याद रखिए बच्चे अपनी सभी समस्याओं का निदान पहले अपने माता-पिता से ही चाहते हैं। जब माता-पिता से उन्हें सही परामर्श नहीं मिलता है, तब वे दूसरों की ओर आकर्षित होते हैं। इसलिए अगर आप चाहती हैं कि आपके बच्चे सही दिशा में आगे बढ़ें और आपसे हर बात शेयर करें तो उनके दोस्त बनने की कोशिश करें। साथ ही बच्चों के साथ बच्चों जैसा ही व्यवहार करें, न कि बड़ों की तरह से उनको ट्रीट करें।

परिवेश भी जिम्मेदार है

बरेली में एक कंपनी में कार्यरत चित्रा श्रीवास्तव कहती हैं कि तेजी से बदलते वक्त के साथ संयुक्त परिवार का दौर भी खत्म हो रहा है। अब तो किसी अवसर विशेष पर ही परिवार के सभी सदस्य एकत्र हो पाते हैं। अकेले रहने वाले बच्चे किसी की दखलंदाजी पसंद नहीं करते। न ही वे अपनी कोई वस्तु किसी के साथ शेयर करना चाहते हैं। ये आदतें आगे चलकर उनके लिए ही दुख का कारण बन जाती हैं। उदाहरण के लिए जब ऐसा बच्चा किसी के घर जाता है या उसके घर कोई आता है तो वह अपनी चीजों को लेकर अति सतर्क रहता है।
अगर कोई उसकी वस्तुएं छूने की कोशिश भी करता है तो वह उग्र हो जाता है। यदि आप चाहती हैं कि बच्चे का व्यक्तित्व संतुलित और सकारात्मक हो तो इसके लिए जरूरी है कि आप बच्चों के साथ अच्छी तरह घुलें-मिलें और उनके मनोभावों को समझने का प्रयास करें। इसके अतिरिक्त बच्चों को परिवार और परिवार के महत्व के बारे में भी बताएं। छुट्टियों के दौरान उन्हें ताऊ, बुआ, मामा, मौसी आदि के परिवारों से भी मिलवाएं। आप सबके साथ छुट्टियां बिताने का भी प्रोग्राम बना सकती हैं। चाहें तो रिश्तेदारों को अपने यहां भी आमंत्रित कर सकती हैं। इससे बच्चे भावनात्मक रूप से मजबूत होंगे और वे रिश्तों की अहमियत समझेंगे।

साभार दैनिकजागरण


prathamik shikshak

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