दुनिया के ये असली अजूबे
हमारी दुनिया
रहस्यों से भरी है। हम जिस चीज की कल्पना
भी नहीं कर सकते, ऐसे स्थान और चीजें इस धरा पर हैं।
इन्हें कुदरत का करिश्मा कहें, तो शायद गलत नहीं होगा। ऐसे
पेड़, जिन्हें देखकर लगता है जैसे प्रकृति ने पेंटिंग कर दी
हो, ऐसा समुद्र जो तारों की चादर ओढ़ लेता है रात में,
रेत ऐसी, जिसने इंद्रधनुष को खींच लिया हो
आसमां से... आइए ऐसी ही जगहों के बारे में जानते हैं ।
तारों से भरा दिखता है समुद्र
यूं तो समुद्र काफी खूबसूरत होता है। पर मालदीव्स का ‘वाधू’ द्वीप सबसे ज्यादा खूबसूरत द्वीपों में से एक माना जाता है। यहां रात होते ही ऐसा लगता है मानो समुद्र के किनारे तारे बिछ गए हों। इस अद्भुत नजारे को देखने के लिए दूर-दूर से लोग आते हैं। इसे धरती का स्वर्ग भी कहा जाता है। वैज्ञानिक बताते हैं कि रात को तारों की तरह चमक आती है ‘फाइटोप्लांकटन’ के कारण। ये माइक्रोब्स होते हैं, जो रात में नीली रोशनी की तरह चमकते हैं। दूर से देखने पर ऐसा लगता है जैसे समुद्र किनारे नीली लाइटिंग कर दी गई हो।
पत्थर
तोड़ोगे तो निकलेगा खून
अक्सर हम सभी यही मानते हैं कि पत्थरों के अंदर जीवन नहीं होता। मगर चिली में ऐसे पत्थर होते हैं, जिन्हें तोड़ने पर उनके अंदर से खून बहने लगता है। इन पत्थरों का नाम प्यूरा चिलीनसिस रखा गया है। इन्हें दुनिया भर में ‘लिविंग रॉक’ के नाम से जाना जाता है। दरअसल, इन पत्थरों के भीतर प्यूरा नामक जीव होता है, जो आमतौर पर चिली और पेरू के समुद्र तटों पर रहता है। ये समुद्र के पानी को सोखकर उससे अपना भोजन ग्रहण करते हैं। तुम्हें ये जानकर और अधिक हैरानी होगी कि इन पत्थरों के भीतर जो जीव रहता है, वो जन्म के समय नर होता है मगर विकसित होने के साथ-साथ इसका लिंग बदलकर मादा हो जाता है।
अक्सर हम सभी यही मानते हैं कि पत्थरों के अंदर जीवन नहीं होता। मगर चिली में ऐसे पत्थर होते हैं, जिन्हें तोड़ने पर उनके अंदर से खून बहने लगता है। इन पत्थरों का नाम प्यूरा चिलीनसिस रखा गया है। इन्हें दुनिया भर में ‘लिविंग रॉक’ के नाम से जाना जाता है। दरअसल, इन पत्थरों के भीतर प्यूरा नामक जीव होता है, जो आमतौर पर चिली और पेरू के समुद्र तटों पर रहता है। ये समुद्र के पानी को सोखकर उससे अपना भोजन ग्रहण करते हैं। तुम्हें ये जानकर और अधिक हैरानी होगी कि इन पत्थरों के भीतर जो जीव रहता है, वो जन्म के समय नर होता है मगर विकसित होने के साथ-साथ इसका लिंग बदलकर मादा हो जाता है।
इंद्रधनुष
सरीखा पेड़
पेड़ के तने पर अक्सर लोग कुछ लिख देते हैं या उसकी छाल हटा देते हैं। लेकिन अगर किसी पेड़ का तना ऐसा हो, मानो उस पर इंद्रधनुष बना हो, तो तुम उसका क्या करोगे! ऐसा पेड़ ब्रिटेन में है। इसका नाम यूकालिप्टस डेगलप्टा है। यह काफी लंबा पेड़ होता है। इस पेड़ का प्रयोग कागज बनाने में किया जाता है। इसके रंग देखकर लगता है जैसे इसे पेंट किया गया हो, पर इसके ये रंग बिल्कुल असली हैं। इस पेड़ के तने पर नीला, हरा, पीला, लाल, पर्पल रंग मिक्स दिखाई देता है। लगता है जैसे समुद्र किनारे नीली लाइटिंग कर दी गई हो।
पेड़ के तने पर अक्सर लोग कुछ लिख देते हैं या उसकी छाल हटा देते हैं। लेकिन अगर किसी पेड़ का तना ऐसा हो, मानो उस पर इंद्रधनुष बना हो, तो तुम उसका क्या करोगे! ऐसा पेड़ ब्रिटेन में है। इसका नाम यूकालिप्टस डेगलप्टा है। यह काफी लंबा पेड़ होता है। इस पेड़ का प्रयोग कागज बनाने में किया जाता है। इसके रंग देखकर लगता है जैसे इसे पेंट किया गया हो, पर इसके ये रंग बिल्कुल असली हैं। इस पेड़ के तने पर नीला, हरा, पीला, लाल, पर्पल रंग मिक्स दिखाई देता है। लगता है जैसे समुद्र किनारे नीली लाइटिंग कर दी गई हो।
झील
ऐसी जो जला दे...
नेट्रोन झील, तंजानिया में है। केन्या बॉर्डर यानी अफ्रीका के बॉर्डर से लगती ये झील पूरी दुनिया में अपने तापमान को लेकर चर्चा में रहती है। इस झील का तापमान 60 डिग्री सेल्सियस से अधिक रहता है और इसके पानी में सोडा व नमक की मात्रा भी काफी अधिक है। इसीलिए यह जंगली जानवरों व पक्षियों के जीवन के लिए उपयुक्त नहीं मानी जाती। कहते हैं यहां एक बार छलांग लगाने वाला जीव सख्त पत्थर में परिवर्तित हो जाता है। अभी भी इस झील व इसके आसपास ऐसे कई जीवों के पत्थरनुमा शरीर देखे जा सकते हैं।
नेट्रोन झील, तंजानिया में है। केन्या बॉर्डर यानी अफ्रीका के बॉर्डर से लगती ये झील पूरी दुनिया में अपने तापमान को लेकर चर्चा में रहती है। इस झील का तापमान 60 डिग्री सेल्सियस से अधिक रहता है और इसके पानी में सोडा व नमक की मात्रा भी काफी अधिक है। इसीलिए यह जंगली जानवरों व पक्षियों के जीवन के लिए उपयुक्त नहीं मानी जाती। कहते हैं यहां एक बार छलांग लगाने वाला जीव सख्त पत्थर में परिवर्तित हो जाता है। अभी भी इस झील व इसके आसपास ऐसे कई जीवों के पत्थरनुमा शरीर देखे जा सकते हैं।
फूलों
से भर जाता है रेगिस्तान
रेगिस्तान के बारे में कहा जाता है कि वहां कैक्टस जैसे पौधे ही पनपते हैं, जिन्हें पानी की बहुत कम आवश्यकता होती है। ऐसे में अगर हम यह कहें कि दुनिया में एक ऐसा रेगिस्तान भी है, जो साल के कुछ महीनों में फूलों से भर जाता है, तो क्या तुम इसे सच मानोगे? मानो या नहीं, पर ये सच है। इस रेगिस्तान का नाम अटाकामा है और यह चिली में है। जिस साल औसत से अधिक वर्षा होती है, उस साल सितंबर से नवंबर माह के बीच इस रेगिस्तान में कई रंगों के फूल खिल जाते हैं। वैज्ञानिकों का मानना है कि अधिक बारिश से जमीन के भीतर दबे बीजों तक पानी पहुंच जाता है और वे बाहर निकलकर खिल उठते हैं। जिस भी साल ये रेगिस्तान फूलों से भरता है, उस साल इसे देखने के लिए भारी संख्या में सैलानी चिली पहुंचते हैं। जिन लोगों ने इसे देखा है वे बताते हैं कि इसे देखना उनके लिए किसी चमत्कार से कम नहीं था। दूर-दूर तक फैली रेत और पत्थरों के बीच ऐसा लगता है जैसे किसी ने रंगों से भरा कारपेट बिछा दिया हो।
रेगिस्तान के बारे में कहा जाता है कि वहां कैक्टस जैसे पौधे ही पनपते हैं, जिन्हें पानी की बहुत कम आवश्यकता होती है। ऐसे में अगर हम यह कहें कि दुनिया में एक ऐसा रेगिस्तान भी है, जो साल के कुछ महीनों में फूलों से भर जाता है, तो क्या तुम इसे सच मानोगे? मानो या नहीं, पर ये सच है। इस रेगिस्तान का नाम अटाकामा है और यह चिली में है। जिस साल औसत से अधिक वर्षा होती है, उस साल सितंबर से नवंबर माह के बीच इस रेगिस्तान में कई रंगों के फूल खिल जाते हैं। वैज्ञानिकों का मानना है कि अधिक बारिश से जमीन के भीतर दबे बीजों तक पानी पहुंच जाता है और वे बाहर निकलकर खिल उठते हैं। जिस भी साल ये रेगिस्तान फूलों से भरता है, उस साल इसे देखने के लिए भारी संख्या में सैलानी चिली पहुंचते हैं। जिन लोगों ने इसे देखा है वे बताते हैं कि इसे देखना उनके लिए किसी चमत्कार से कम नहीं था। दूर-दूर तक फैली रेत और पत्थरों के बीच ऐसा लगता है जैसे किसी ने रंगों से भरा कारपेट बिछा दिया हो।
रेत
में बिखरे हैं रंग ही रंग
चीन में डेंक्सिया लैंडफॉर्म नाम की ऐसी जगह है, जहां की रेत और पत्थर रंग-बिरंगे हैं। छोटे आकार वाले पत्थरों और लाल रंग की रेत की पूरी श्रृंखला सी बन गई है यहां पर। आरंभ में तो ऐसा लगता है जैसे किसी ने पत्थरों को कई रंगों में रंग दिया हो, पर इनके ये रंग प्राकृतिक हैं। यहां छोटे-छोटे पहाड़ मुख्य रूप से दक्षिण चीन में दूर-दूर तक फैले हैं। काफी पुराना होने के कारण इनके बीच दर्रे बन गए हैं, जो समय के साथ और गहरे हो गए हैं। तुम्हें ये जानकर हैरानी होगी कि इस श्रृंखला के बीच-बीच में गुफाएं भी हैं। साल 2010 में दक्षिण चीन के इस चीन डेंक्सिया में कई गुफाओं को वर्ल्ड हेरिटेज साइट के तहत चुना गया था। वैज्ञानिकों का मानना है कि तकरीबन 80 मिलियन यानी 800 लाख साल पहले लाल रंग की रेत धरती पर मौजूद थी। लेकिन जब धरती पर काफी परिवर्तन आए, उस प्राकृतिक बदलाव में लाल रंग की रेत भी धरती में दबती चली गई। इसके बाद 150 लाख साल पहले धरती के भीतर टेक्टोनिक प्लेट में हुई हलचल से काफी कुछ बदल गया। इसके हजारों साल बाद हिमालयन रेंज में अचानक बदलाव आने से ये रेत बाहर आ गई। ये रेत करीब 290 स्क्वायर किलोमीटर के क्षेत्र में फैली हुई है।
चीन में डेंक्सिया लैंडफॉर्म नाम की ऐसी जगह है, जहां की रेत और पत्थर रंग-बिरंगे हैं। छोटे आकार वाले पत्थरों और लाल रंग की रेत की पूरी श्रृंखला सी बन गई है यहां पर। आरंभ में तो ऐसा लगता है जैसे किसी ने पत्थरों को कई रंगों में रंग दिया हो, पर इनके ये रंग प्राकृतिक हैं। यहां छोटे-छोटे पहाड़ मुख्य रूप से दक्षिण चीन में दूर-दूर तक फैले हैं। काफी पुराना होने के कारण इनके बीच दर्रे बन गए हैं, जो समय के साथ और गहरे हो गए हैं। तुम्हें ये जानकर हैरानी होगी कि इस श्रृंखला के बीच-बीच में गुफाएं भी हैं। साल 2010 में दक्षिण चीन के इस चीन डेंक्सिया में कई गुफाओं को वर्ल्ड हेरिटेज साइट के तहत चुना गया था। वैज्ञानिकों का मानना है कि तकरीबन 80 मिलियन यानी 800 लाख साल पहले लाल रंग की रेत धरती पर मौजूद थी। लेकिन जब धरती पर काफी परिवर्तन आए, उस प्राकृतिक बदलाव में लाल रंग की रेत भी धरती में दबती चली गई। इसके बाद 150 लाख साल पहले धरती के भीतर टेक्टोनिक प्लेट में हुई हलचल से काफी कुछ बदल गया। इसके हजारों साल बाद हिमालयन रेंज में अचानक बदलाव आने से ये रेत बाहर आ गई। ये रेत करीब 290 स्क्वायर किलोमीटर के क्षेत्र में फैली हुई है।
आरती मिश्रा
साभार
हिंदुस्तान