अथक प्रयास से तय करें असंभव से संभव की दूरी
राजकुमारी
विद्योत्तमा शास्त्रों का ज्ञान रखने वाली विदूषी छात्रा थीं। उन्होंने संस्कृत के
कई विद्ववानों को पराजित किया था। उन्होंने अपने ज्ञान के घमंड में यह घोषणा की कि
वे उसी विद्वान से विवाह करेंगी जो उन्हें पराजित करेगा। राजकुमारी द्वारा पराजित
और अपमानित हुए सभी संस्कृत जानने वाले विद्वानों ने उनके घमंड को तोडम्ने के लिए
प्रतिशोध लेने की ठानी। उन्होंने विद्योत्तमा को एक परम मूर्ख से पराजित करने की
योजना बनाई। सभी एक मूर्ख की तलाश में निकल पड़े।
कई लोगों से मिले परन्तु उन्हें किसी अत्यंत मूर्ख की तलाश थी। एक दिन
चलते-चलते वे एक पेड़ के नीचे विश्राम के लिए रुक गए। तभी उनकी नजर पेड़ की शाख पर
बैठे व्यक्ति पर गई। वह जिस शाख के किनारे बैठा था उसी शाख को काट रहा था। सभी
विद्वान यह देख आश्चर्य में पडम् गए कि कोई इतना मूर्ख कैसे हो सकता है? उस मूर्ख का नाम कालीदास था। उन्होंने कालीदास को
राजकुमारी द्वारा पराजित करने के बारे में सोचा। उन्होंने कालीदास को समझाया कि
उसे राजकुमारी के सामने मौन धारण करना है और केवल इशारों में बात करनी है।
उन्होंने कालीदास को राजमहल में महान पंडित के रूप में परिचित कराया। विद्योत्तमा ने
कालीदास से प्रश्न करने शुरू किए। उसने उंगलियों और हावभाव के जरिए ही जवाब दिए और
उसके हावभाव को विद्वानों ने समझदारी से भाषान्तरित किया। अंत में सभी ने कालीदास
को महान पंडित मान लिया।
विद्योत्तमा का विवाह कालीदास के साथ हो गया। विवाह के कुछ समय बाद ही उसे
समझ में आ गया कि कालीदास मूर्ख है और उसे संस्कृत का खास ज्ञान नहीं है। उन्होंने
कालीदास को राजमहल से निकाल दिया। वह अपनी दुगर्ति से दुखी हो भटकने लगा। उसने
अपना जीवन त्यागने का सोचा और नदी की तरफ चल पड़ा। नदी किनारे उसकी नजर चट्टानों
पर पड़ी जिनमें गहरे चिन्ह बने हुए थे। धोबी द्वारा कपड़े धोते समय बार-बार पटकने
से चट्टान बीच में से गहरी होकर घिस गई थी। कालीदास को एहसास हुआ कि अगर केवल गीले
कपड़े की मार से मजबूत पत्थर में निशान पड़ सकते हैं तो उसकी मोटी बुद्धि भी तो
बार बार प्रयास से तेज हो सकती है। ऐसा सोच कालीदास ने कड़ी मेहनत करने का प्रण
लिया और दिन रात एक कर ज्ञान हासिल किया। कालीदास संस्कृत के महान पंडित के रूप
में जाने गए और उनकी बुद्धिमानी को अतुलनीय माना गया। उन्हें भारतीय शेक्सपीयर कहा
जाता है, हालांकि वह शेक्सपीयर से बहुत
पहले के युग के थे। उन्होंने लगन से हार न मानने का संदेश दिया और असंभव को संभव
कर दिखाया।
कई सीख
-इतिहास गवाह है कि जितने भी विद्वान या ज्ञानी व्यक्ति सफल हुए, वे सभी जरूरी नहीं कि बचपन से ही प्रतिभावान थे। कई बच्चे अपनी प्रतिभा निखार नहीं पाते या उसे दर्शाने में हिचकते हैं क्योंकि शिक्षक व अभिभावक उन्हें कमतर आंकते हैं और मौका नहीं देते कि वे अपनी कमजोरियों को दूर कर एक विजेता की तरह जीवन की कठिनाइयों का सामना कर पाएं।
-अल्बर्ट आइंस्टीन के माता-पिता और दादा चिंतित रहते थे कि वह बहुत देर से बोलने लगे। वे ज्यादा घुलते-मिलते नहीं थे। उन्हें डिसलेक्सिच व विकास संबंधित तकलीफें थीं।
-शेक्सपीयर जो कि अंग्रेजी साहित्य के पर्याय हैं, उनकी औपचारिक शिक्षा की जानकारी कहीं दर्ज नहीं है और उन्होंने शायद ही माध्यमिक स्कूल तक पढ़ाई की।
-विन्सटन चर्चिल, बीसवीं सदी के एक ताकतवर राजनीतिज्ञ अपने स्कूली दिनों में अपने खराब प्रदर्शन के लिए सजा पाते रहे। उन्हें पढ़ना काफी मुश्किल लगता था।
-ये सभी महान व्य्क्ति किसी परिचय के मोहताज नहीं है और न ही इनके उदाहरण इसलिए दिए गए हैं कि स्कूली शिक्षा महत्वपूर्ण नहीं है। शिक्षा का अत्याधिक महत्व है। परंतु यह जरूरी नहीं कि जो बच्चे स्कूली शिक्षा में सफलता अर्जित न कर सकें वे आगे चलकर नाकाम होंगे। अभिभावक कुछ मापदंड बना लेते हैं और अगर बच्चा इन पर खरा न उतरे तो उसे कमजोर समझा जाता है। जरूरी नहीं कि किसी बच्चे को गणित या अंग्रेजी समझ न आए तो वह मूर्ख है। माता पिता और शिक्षकों को अपने आंकलन के तरीकों को बदलने की जरूरत है। हर बच्चे की किसी ना किसी क्षेत्र में रुचि होती है। जरूरत है उसे लगन और मेहनत के लिए प्रेरित करने की।
-इतिहास गवाह है कि जितने भी विद्वान या ज्ञानी व्यक्ति सफल हुए, वे सभी जरूरी नहीं कि बचपन से ही प्रतिभावान थे। कई बच्चे अपनी प्रतिभा निखार नहीं पाते या उसे दर्शाने में हिचकते हैं क्योंकि शिक्षक व अभिभावक उन्हें कमतर आंकते हैं और मौका नहीं देते कि वे अपनी कमजोरियों को दूर कर एक विजेता की तरह जीवन की कठिनाइयों का सामना कर पाएं।
-अल्बर्ट आइंस्टीन के माता-पिता और दादा चिंतित रहते थे कि वह बहुत देर से बोलने लगे। वे ज्यादा घुलते-मिलते नहीं थे। उन्हें डिसलेक्सिच व विकास संबंधित तकलीफें थीं।
-शेक्सपीयर जो कि अंग्रेजी साहित्य के पर्याय हैं, उनकी औपचारिक शिक्षा की जानकारी कहीं दर्ज नहीं है और उन्होंने शायद ही माध्यमिक स्कूल तक पढ़ाई की।
-विन्सटन चर्चिल, बीसवीं सदी के एक ताकतवर राजनीतिज्ञ अपने स्कूली दिनों में अपने खराब प्रदर्शन के लिए सजा पाते रहे। उन्हें पढ़ना काफी मुश्किल लगता था।
-ये सभी महान व्य्क्ति किसी परिचय के मोहताज नहीं है और न ही इनके उदाहरण इसलिए दिए गए हैं कि स्कूली शिक्षा महत्वपूर्ण नहीं है। शिक्षा का अत्याधिक महत्व है। परंतु यह जरूरी नहीं कि जो बच्चे स्कूली शिक्षा में सफलता अर्जित न कर सकें वे आगे चलकर नाकाम होंगे। अभिभावक कुछ मापदंड बना लेते हैं और अगर बच्चा इन पर खरा न उतरे तो उसे कमजोर समझा जाता है। जरूरी नहीं कि किसी बच्चे को गणित या अंग्रेजी समझ न आए तो वह मूर्ख है। माता पिता और शिक्षकों को अपने आंकलन के तरीकों को बदलने की जरूरत है। हर बच्चे की किसी ना किसी क्षेत्र में रुचि होती है। जरूरत है उसे लगन और मेहनत के लिए प्रेरित करने की।
साभार हिंदुस्तान