तमिलनाडु और
आंध्रप्रदेश में मकर संक्रांति को 'पोंगल' के रुप
में मनाया जाता है। सौर पंचांग के अनुसार यह पर्व महीने की पहली तारीख को आता है।
पोंगल विशेष रूप से किसानों का पर्व है। पोंगल सामान्यतः तीन दिन तक मनाया जाता
है। पहले दिन कूड़ा-करकट एकत्र कर जलाया जाता है, दूसरे दिन
लक्ष्मी की पूजा होती है और तीसरे तीन पशु धन की।
पोंगल के दिन स्नान करके खुले आँगन में मिट्टी के नए बर्तन में खीर बनाई जाती है, जिसे पोंगल कहते हैं। इसके बाद सूर्य भगवान को नैवेद्य चढ़ाया जाता है। तब खीर को प्रसाद रूप में सब लोग ग्रहण करते हैं। इस दिन बेटी और दामाद का घर पर स्वागत किया जाता है। तीसरे दिन किसान अपने पशुओं को खूब अच्छी तरह सजाकर जुलूस निकालते हैं। कन्याओं के लिए यह हर्षोल्लास का पर्व है।
पोंगल के दिन स्नान करके खुले आँगन में मिट्टी के नए बर्तन में खीर बनाई जाती है, जिसे पोंगल कहते हैं। इसके बाद सूर्य भगवान को नैवेद्य चढ़ाया जाता है। तब खीर को प्रसाद रूप में सब लोग ग्रहण करते हैं। इस दिन बेटी और दामाद का घर पर स्वागत किया जाता है। तीसरे दिन किसान अपने पशुओं को खूब अच्छी तरह सजाकर जुलूस निकालते हैं। कन्याओं के लिए यह हर्षोल्लास का पर्व है।
तीन दिन के इस
पर्व में सूर्य की पूजा, पशु धन की पूजा और सामूहिक स्तर पर प्रसन्नता के माहौल में सभी लोग
गीत-संगीत का आनंद लेते हैं। पोंगल पर्व से ही तमिलनाडु में नववर्ष का शुभारंभ हो
जाता है।
गांवों में यह पर्व ज्यादा जोर-शोर से मनाया जाता है। पशुधन पूजा में पोंगल पर्व बिल्कुल गोवर्धन पूजन की तरह है। इस समय धान की फसल खलिहान में आ चुकी होती है। चावल, दूध, घी, शक्कर से भोजन तैयार कर सूर्य देव को भोग लगाते हैं। पोंगल पर अच्छी फसल, प्रकाश और सुखदायी जीवन के लिए सूर्य के प्रति कृतज्ञता व्यक्त करने का पर्व है।
पोंगल त्योहार का प्रमुख देवता सूर्य को माना जाता है। तमिल साहित्य में सूर्य का यशोगान उपलब्ध है। खास तौर पर पोंगल के दिन पशुधन व घर के हर जानवर को साफ-स्वच्छ और स्नान कराया जाता है।
बैलों और गौमाता के सींगों को कलर से रंगबिरंगी किया जाता हैं। स्वादिष्ट भोजन पका कर उन्हें खिलाए जाते है। सांडों-बैलों के साथ भागदौड़ कर उन्हें नियंत्रित करने का जश्न भी मनाया जाता है। यह खतरनाक खेल है जो बहादुरी की मांग करता है।
कई वर्षों पूर्व पोंगल पर्व कन्याओं द्वारा बहादुरी दिखाने वाले युवकों से विवाह करने का पर्व भी हुआ करता था, लेकिन आधुनिक युग में पोंगल खेत-खलिहानों के बजाए टीवी, मोबाइल आदि पर सिकुड़ता जा रहा है।
गांवों में यह पर्व ज्यादा जोर-शोर से मनाया जाता है। पशुधन पूजा में पोंगल पर्व बिल्कुल गोवर्धन पूजन की तरह है। इस समय धान की फसल खलिहान में आ चुकी होती है। चावल, दूध, घी, शक्कर से भोजन तैयार कर सूर्य देव को भोग लगाते हैं। पोंगल पर अच्छी फसल, प्रकाश और सुखदायी जीवन के लिए सूर्य के प्रति कृतज्ञता व्यक्त करने का पर्व है।
पोंगल त्योहार का प्रमुख देवता सूर्य को माना जाता है। तमिल साहित्य में सूर्य का यशोगान उपलब्ध है। खास तौर पर पोंगल के दिन पशुधन व घर के हर जानवर को साफ-स्वच्छ और स्नान कराया जाता है।
बैलों और गौमाता के सींगों को कलर से रंगबिरंगी किया जाता हैं। स्वादिष्ट भोजन पका कर उन्हें खिलाए जाते है। सांडों-बैलों के साथ भागदौड़ कर उन्हें नियंत्रित करने का जश्न भी मनाया जाता है। यह खतरनाक खेल है जो बहादुरी की मांग करता है।
कई वर्षों पूर्व पोंगल पर्व कन्याओं द्वारा बहादुरी दिखाने वाले युवकों से विवाह करने का पर्व भी हुआ करता था, लेकिन आधुनिक युग में पोंगल खेत-खलिहानों के बजाए टीवी, मोबाइल आदि पर सिकुड़ता जा रहा है।