झगड़ालू मेढक
पंचतंत्र से
एक कुएं में बहुत से मेढक रहते थे। उनके राजा का नाम था गंगदत्त। गंगदत्त
बहुत झगड़ालू स्वभाव का था। आसपास दो-तीन और भी कुएं थे। उनमें भी मेढक रहते थे।
हर कुएं के मेढकों का अपना राजा था। हर राजा से किसी न किसी बात पर गंगदत्त का
झगड़ा चलता रहता था। वह अपनी मूर्खता से कोई गलत काम करने लगता और बुद्धिमान
मेढक रोकने की कोशिश करता तो मौका मिलते ही अपने पाले गुंडे मेढकों से पिटवा
देता। कुएं के मेढकों में भीतर गंगदत्त के प्रति रोष बढ़ता जा रहा था। घर में भी
झगड़ों से चैन न था। अपनी हर मुसीबत के लिए दोष देता। एक दिन गंगदत्त का पड़ोसी
मेढक राजा से खूब झगड़ा हुआ। गंगदत्त ने अपने कुएं में आकर बताया कि पड़ोसी राजा
ने उसका अपमान किया है। अपमान का बदला लेने के लिए उसने मेढकों को आदेश दिया कि
पड़ोसी कुएं पर हमला करें। कुछ सयाने मेढकों ने एकजुट होकर एक स्वर में कहा ‘राजन, पड़ोसी कुएं में हमसे दोगुने मेढक हैं।’
गंगदत्त बुरी तरह तिलमिला गया। मन ही मन में उसने ठान ली कि इन गद्दारों
को भी सबक सिखाना होगा। गंगदत्त ने अपने बेटों को बुलाकर भड़काया ‘बेटा, पड़ोसी राजा ने तुम्हारे पिताश्री का
घोर अपमान किया है। जाओ, पड़ोसी
राजा के बेटों की ऐसी पिटाई करो।‘ बड़े बेटे ने कहा ‘पिताश्री, आपने कभी हमें टर्राने की इजाजत नहीं
दी। टर्राने से ही मेढकों में बल आता है और जोश आता है। बिना हौसले और जोश के हम
किसी की क्या पिटाई कर पाएंगे?‘ अब गंगदत्त सबसे चिढ़ गया। एक दिन वह बड़बड़ाता कुएं से बाहर निकल इधर-उधर
घूमने लगा। उसे एक भयंकर नाग पास ही बने अपने बिल में घुसता नजर आया। उसकी आंखें
चमकीं। जब अपने दुश्मन बन गए हो तो दुश्मन को अपना बनाना चाहिए। यह सोच वह बिल
के पास जाकर बोला ‘नागदेव, मेरा पण्राम।‘ नागदेव फुफकारा, ‘अरे मेढक मैं तुम्हारा बैरी हूं।
तुम्हें खा जाता हूं और तू मेरे बिल के आगे आकर मुझे आवाज दे रहा है। गंगदत्त
टर्राया, ‘हे नाग, कभी-कभी शत्रुओं से ज्यादा अपने दुख
देने लगते हैं। मेरा अपनी जाति वालों और सगों ने इतना घोर अपमान किया है कि
उन्हें सबक सिखाने के लिए मुझे तुम जैसे शत्रु के पास सहायता मांगने आना पड़ा है
। तुम मेरी दोस्ती स्वीकार करो और मजे करो।‘
नाग ने बिल से अपना सिर बाहर निकाला और बोला, ‘मजे, कैसे मजे?‘
गंगदत्त ने कहा, ‘मैं
तुम्हें इतने मेढक खिलाऊंगा कि तुम मुटाते-मुटाते अजगर बन जाओगे।‘ नाग ने शंका व्यक्त की, ‘पानी में मैं जा नहीं सकता। कैसे
पकडूंगा मेढक?‘ गंगदत्त
ने ताली बजाई, ‘नाग भाई, यहीं तो मेरी दोस्ती तुम्हारे काम
आएगी। मैंने पड़ोसी राजाओं के कुओं पर नजर रखने के लिए अपने जासूस मेढकों से
गुप्त सुरंगें खुदवा रखी हैं। सुरंगें जहां मिलती हैं, वहां एक कक्ष है। तुम वहां रहना और
जिस-जिस मेढक को खाने के लिए कहूं, उन्हें खाते जाना।‘ नाग गंगदत्त से दोस्ती के लिए तैयार हो
गया। नाग गंगदत्त के साथ सुरंग कक्ष में जाकर बैठ गया। गंगदत्त ने पहले सारे
पड़ोसी मेढक राजाओं और उनकी प्रजाओं को खाने के लिए कहा। नाग कुछ सप्ताहों में
सारे दूसरे कुओं के मेढक सुरंगों के रास्ते जा-जाकर खा गया। जब सब समाप्त हो गए
तो नाग गंगदत्त से बोला ‘अब किसे
खाऊं? जल्दी
बता। चौबीस घंटे पेट फुल रखने की आदत पड़ गई है।‘ गंगदत्त ने कहा, ‘अब मेरे कुएं के सभी स्यानों और
बुद्धिमान मेढकों को खाओ।‘ वह खाए जा चुके तो प्रजा की बारी आई। गंगदत्त ने सोचा, ‘प्रजा की ऐसी तैसी। हर समय कुछ न कुछ
शिकायत करती रहती है। उनको खाने के बाद नाग ने खाना मांगा तो गंगदत्त बोला, ‘नागमित्र, अब केवल मेरा कुनबा और मेरे मित्र बचे
हैं। खेल खत्म और मेढक हजम।‘ नाग ने फन फैलाया और फुफकारने लगा। उसने नाग को अपने मित्र खिलाए फिर
उसके बेटे नाग के पेट में गए। गंगदत्त ने सोचा कि मैं और मेढकी जिंदा रहे तो
बेटे और पै दा कर लेंगे। बेटे खाने के बाद नाग फुफकारा, ‘और खाना कहां है? गंगदत्त ने डरकर मेढकी की ओर इशारा
किया। गंगदत्त ने सोचा, ‘चलो बूढी
मेढकी से छुटकारा मिला। नई जवान मेढकी से विवाह कर नया संसार बसाऊंगा।‘
मेढकी को खाने के बाद नाग ने मुंह फाड़ा, ‘खाना।‘ गंगदत्त ने हाथ जोड़े, ‘अब तो केवल मैं बचा हूं।‘ नाग बोला, ‘तू कौन-सा मेरा मामा लगता है’ और उसे हड़प गया। सीख- अपनों से बदला
लेने के लिए जो शत्रु का साथ लेता है उसका अंत निश्चित है।
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