यही है परवरिश का सही तरीका
बच्चों
को लेकर माता-पिता का फिक्र करना स्वाभाविक है, पर इस बात को लेकर
बहुत अधिक परेशान होना भी ठीक नहीं है। बच्चों की परवरिश एक बड़ी जिम्मेदारी है
और आप इस कसौटी पर खरा उतरना चाहती हैं, पर बहुत अधिक फिक्र और बात-बात में टोकने की आदत
बच्चों को आपसे दूर कर सकती है, इसलिए इस मामले में बहुत
अधिक कांशस होने के बजाय अपनाएं कुछ सिंपल रूल्स हर बच्चा अलग है।
अगर
कोई तरीका आपकी दोस्त के बच्चों की परवरिश में कारगर साबित हुआ है तो इसका यह अर्थ
नहीं कि आपके बच्चे के मामले में भी वह सही साबित होगा। माता-पिता हमेशा कहते हैं
कि हमारा ब'चा दूसरे बच्चों से अलग है, जब ऐसा है तो जाहिर है
कि उसकी परवरिश में वे नियम लागू नहीं हो सकते, जो दूसरे
अभिभावक अपने ब'चों के साथ अपनाते हैं, इसलिए ब'चों की परवरिश के मामले में किसी की नकल
करने से पहले उसके सभी सकारात्मक और नकारात्मक पहलुओं के बारे में भली प्रकार
सोच-विचार कर लें। इसके बाद अपनी जरूरत के हिसाब से फैसला करें।
सही
बात पर हो फोकस
हम
लोग जिंदगी में छोटी-छोटी बातों को लेकर परेशान होते हैं, पर इस चक्कर
में उन बातों को भूल जाते हैं जिन पर वास्तव में ध्यान देना चाहिए। छोटी-छोटी
बातों पर ब'चों को लगातार टोकते रहना ठीक नहीं। बच्चों से
थोड़ी बहुत गल्तियां होना स्वाभाविक है। उदाहरण के लिए सामान को करीने से रखने के
बजाय वे उसे इधर-उधर रख देते हैं। हो सकता है कि आप उनसे कोई काम करने को कहें और
वे उसे पूरा करने के चक्कर में काम और बढ़ा दें। इसके लिए उन्हें बुरी तरह डांटना
ठीक नहीं है। इससे कोई फायदा होने वाला नहीं है। उत्तेजित होने से काम नहीं चलेगा,
धैर्य रखते हुए ब'चों को अनुशासन सिखाएं।
उन्हें बताएं कि किसी काम को करने का सही तरीका क्या है।
अनावश्यक
बोझ ठीक नहीं
आप
चाहेंगी कि आपका बच्चा सबसे काबिल बने, पर इसकी खातिर उस पर किसी काम का अनावश्यक बोझ लादना
ठीक नहीं। विशेषज्ञ कहते हैं कि ब'चों को एक्टिव रखने के लिए
उन्हें विभिन्न गतिविधियों में व्यस्त रखना जरूरी है। कई बार इस चक्कर में अभिभावक
ब'चों पर जरूरत से ज्यादा बोझ लाद देते हैं। एक मां होने के
नाते आपको यह पता होना चाहिए कि ब'चे की क्षमताएं क्या हैं।
उसके अनुरूप ही ब'चे के लिए हॉबी क्लासेज या ट्यूशन आदि
निर्धारित करें।
जासूसी
करना ठीक नहीं
बच्चों
की हर बात को अविश्वास की नजर से देखना ठीक नहीं है। कुछ मां-बाप की यह आदत होती
है कि वे ब'चों की बातों पर आसानी से विश्वास नहीं करते। बच्चों की गतिविधियों पर नजर
रखना और उनकी जासूसी करने में अंतर है। असंगत बातों को लेकर परेशान होने की
प्रवृत्ति पर अंकुश लगाएं। अभिभावक होने के नाते ब'चों को
सही-गलत की जानकारी देना आपका फर्ज है, लेकिन उनकी हर बात पर
संदेह करना और उनकी जासूसी करना गलत है। अपनी परवरिश पर भरोसा करें। आपको इस बात
का यकीन होना चाहिए कि आपने बच्चे को सही-गलत का फर्क भली-भांति समझाया है और वे
सही फैसला लेने के काबिल हैं।
अपनी
अपेक्षाओं पर लगाम कसें
अक्सर
मां-बाप बच्चों से कुछ ज्यादा अपेक्षाएं करने लगते हैं, इससे बच्चे
तनाव में आ जाते हैं और उनका स्वाभाविक विकास प्रभावित होता है। किसी मामले में
अगर बच्चा निर्धारित लक्ष्य पूरा नहीं कर पाता तो वह बात उसे परेशान करती रहती है।
बच्चे के सामने ऊंचे मानक रखकर उसे तनाव में डालने की गलती न करें। इसके बजाय अच्छे
प्रदर्शन के लिए उसे प्रेरित करने व उसका उत्साह बढ़ाने की कोशिश करनी चाहिए। उससे
हमेशा यह कहें कि कोशिश करने पर सदा ही सफलता मिलती हैं।
उपरोक्त
बातें भले ही छोटी व सामान्य लगें, पर इनका असर बड़ा है।
साभार दैनिकजागरण