जन्म: 19 नवम्बर 1835 – मृत्यु: 18 जून 1858
रानी लक्ष्मीबाई का एकमात्र चित्र जिसे एक
अंग्रेज फोटोग्राफर जॉन स्टोन एण्ड हॉटमैन ने 1850
में खींचा था
मराठा शासित झाँसी राज्य की रानी और 1857 के प्रथम भारतीय स्वतन्त्रता संग्राम की वीरांगना थीं। उन्होंने मात्र 23 वर्ष की आयु
में अंग्रेज़ साम्राज्य की सेना से संग्राम किया और रणक्षेत्र में वीरगति प्राप्त
की किन्तु जीते जी अंग्रेजों को अपनी झाँसी पर क़बजा नहीं करने दिया।
संक्षिप्त जीवनी
लक्ष्मीबाई
का जन्म वाराणसी के भदैनी नामक नगर में 19 नवम्बर 1835 को हुआ था। उनका बचपन का नाम
मणिकर्णिका था परन्तु प्यार से उसे मनु कहा जाता था। मनु की माँ का नाम भागीरथीबाई
तथा पिता का नाम मोरोपन्त तांबे था। मोरोपन्त एक मराठी थे और मराठा बाजीराव की
सेवा में थे। माता भागीरथीबाई एक सुसंस्कृत, बुद्धिमान एवं धार्मिक महिला
थीं। मनु जब चार वर्ष की थी तब उनकी माँ की मृत्यु हो गयी। क्योंकि घर में मनु की
देखभाल के लिये कोई नहीं था इसलिए पिता मनु को अपने साथ बाजीराव के दरबार में ले
गये जहाँ चंचल एवं सुन्दर मनु ने सबका मन मोह लिया। लोग उसे प्यार से
"छबीली" कहकर बुलाने लगे। मनु ने बचपन में शास्त्रों की शिक्षा के साथ
शस्त्रों की शिक्षा भी ली।[2] सन् 1842 में उनका विवाह झाँसी के मराठा शासित राजा गंगाधर राव निम्बालकर के
साथ हुआ और वे झाँसी की रानी बनीं। विवाह के बाद उनका नाम लक्ष्मीबाई रखा गया। सन्
1851 में रानी लक्ष्मीबाई ने एक पुत्र को जन्म दिया। परन्तु चार महीने
की आयु में ही उसकी मृत्यु हो गयी। सन् 1853 में राजा गंगाधर राव का
स्वास्थ्य बहुत अधिक बिगड़ जाने पर उन्हें दत्तक पुत्र लेने की सलाह दी गयी। पुत्र
गोद लेने के बाद 21
नवम्बर 1853 को राजा गंगाधर राव की मृत्यु
हो गयी। दत्तक पुत्र का नाम दामोदर राव रखा गया।
ब्रिटिस राज ने बालक दामोदर के खिलाफ अदालत
में मुकदमा दायर कर दिया। यद्यपि मुकदमे में बहुत बहस हुई, परन्तु इसे खारिज कर दिया गया।
ब्रिटिश अधिकारियों ने राज्य का खजाना ज़ब्त कर लिया और उनके पति के कर्ज़ को रानी
के सालाना खर्च में से काटने का फरमान जारी कर दिया। इसके परिणामस्वरूप रानी को
झाँसी का क़िला छोड़ कर झाँसी के रानीमहल में जाना पड़ा। पर रानी लक्ष्मीबाई ने
हिम्मत नहीं हारी और उन्होनें हर हाल में झाँसी राज्य की रक्षा करने का निश्चय
किया।
झाँसी 1857 के संग्राम का एक प्रमुख
केन्द्र बन गया जहाँ हिंसा भड़क उठी। रानी लक्ष्मीबाई ने झाँसी की सुरक्षा को
सुदृढ़ करना शुरू कर दिया और एक स्वयंसेवक सेना का गठन प्रारम्भ किया। इस सेना में
महिलाओं की भर्ती की गयी और उन्हें युद्ध का प्रशिक्षण दिया गया। साधारण जनता ने
भी इस संग्राम में सहयोग दिया। झलकारी
बाई जो लक्ष्मीबाई की हमशक्ल थी को
उसने अपनी सेना में प्रमुख स्थान दिया।
1857
के
सितम्बर तथा अक्टूबर के महीनों में पड़ोसी राज्य ओरछा
तथा दतिया के राजाओं ने झाँसी पर आक्रमण कर दिया। रानी ने सफलता पूर्वक
इसे विफल कर दिया। 1858 के जनवरी माह में ब्रितानी सेना ने झाँसी की ओर बढ़ना शुरू कर दिया
और मार्च के महीने में शहर को घेर लिया। दो हफ़्तों की लड़ाई के बाद ब्रितानी सेना
ने शहर पर क़बज़ा कर लिया। परन्तु रानी दामोदर राव के साथ अंग्रेजों से बच कर भाग
निकलने में सफल हो गयी। रानी झाँसी से भाग कर कालपी पहुँची और तात्या
टोपे से मिली।
तात्या
टोपे और रानी की संयुक्त सेनाओं ने ग्वालियर के विद्रोही सैनिकों की मदद से ग्वालियर के एक किले पर
क़बज़ा कर लिया। 18 जून 1858 को ग्वालियर के पास कोटा की सराय में ब्रिटिश सेना से लड़ते-लड़ते
रानी लक्ष्मीबाई ने वीरगति प्राप्त की। लड़ाई की रिपोर्ट में ब्रिटिश जनरल
ह्यूरोज़ ने टिप्पणी की कि रानी लक्ष्मीबाई अपनी सुन्दरता, चालाकी और दृढ़ता के लिये
उल्लेखनीय तो थी ही, विद्रोही
नेताओं में सबसे अधिक खतरनाक भी थी।
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