किताबें बनाती है - दिमाग को धारदार
पठन-पाठन
के नाम पर आज के बच्चों का संसार कोर्स की किताबों तक ही सीमित रह गया है। वे भी
पूरी तरह कहां पढ़ी जाती हैं? विद्यार्थी को बता दिया
जाता है परीक्षा में आने लायक अंश कौन से हैं। इसके अलावा कुंजियां, ट्यूशन, कोचिंग
कक्षाएं तो हैं ही! इस तरह बच्चे के लिए शिक्षा के बजाए परीक्षा महत्वपूर्ण हो
जाती है। गहरी नींव नहीं बन पाती है।
जब
कोर्स की किताबों को जानना, समझना, पढ़ना
ही इतना सतही है तो पाठ्यक्रम से इतर किताबों की एक बच्चे की जीवनचर्या में क्या स्थिति
होगी, समझा जा सकता है। पाठ्येतर
पुस्तकों, साहित्य आदि के बारे में
अधिकांश माता-पिता का मानना होता है कि यह समय की बरबादी है। जबकि कोर्स से इतर
किताबें पढ़ने के ढेर सारे लाभ हैं, बच्चे के व्यक्तित्व
निर्माण संबंधी भी और शिक्षा- परीक्षा संबंधी भी।
तरह-तरह
की किताबें पढ़ने से बच्चे की भाषा समृद्ध होती है, शब्द ज्ञान बढ़ता है, वाक्य
विन्यास सुधरता है इससे अंतत: अभिव्यक्ति सुधरती है। अपने आपको अभिव्यक्त करने की
यह भाषाई शक्ति न सिर्फ पर्सनेलिटी बनाती है अपितु इसके परीक्षाओं संबंधी वे
सीधे-सीधे लाभ भी हैं जिनके लिए मां-बाप लालायित रहते हैं। यानी लिखित परीक्षा हो
या साक्षात्कार आपकी अभिव्यक्ति मजबूत है तो आधी लड़ाई आप यूं ही जीत जाते हैं।
आपके
पास लैंग्वेज पावर है, तो आप सब कह सकते हैं जो
आपको आता है, वर्ना आते हुए भी रह जाते
हैं। फिर कोर्स से इतर किताबें पढ़ने से व्यक्ति का सामान्य ज्ञान भी तो बढ़ता है।
उसे कई तरह की जानकारियां मिलती हैं जो कोर्स के दायरे में अन्यथा उसके पास आती ही
नहीं।
साहित्य
संबंधी पुस्तकों से व्यक्ति देश - दुनिया के तरह-तरह के चरित्रों से मिलता है, भिन्न-भिन्न
जगहों की सैर करता है। इससे उसे न सिर्फ दुनिया में जो कुछ हुआ उसका इतिहास, बल्कि
जो कुछ हो रहा उसकी जानकारी भी मिलती है। इससे उसमें मनुष्य के मनोविज्ञान को
समझने की अतिरिक्त समझ विकसित होती है। इससे समझदारी, भले-बुरे
का विवेक तो विकसित होता ही है आत्मविश्वास भी बढ़ता है, क्योंकि
व्यक्ति ज्ञान और बुनियादी समझ दोनों में ही आगे
बढ़ता है।
नन्हें
बच्चों में साहित्य की शुरुआत लोककथाओं, परिकथाओं, सरल
कहानियों, कविताओं, कॉमिक्स
आदि से होती है। टीवी में आने वाले कार्टून और बच्चों के कार्यक्रम भी महत्वपूर्ण
हैं वे भी अतिरिक्त ज्ञान को बढ़ाते हैं। मगर किताबें उनसे दो कदम आगे हैं। वे
बच्चों की कल्पनाशक्ति को भी बढ़ाती है। वे उन जगहों और पात्रों को अपनी कल्पना में
रचना सीखते हैं। पर सवाल ये हैं कि आज के युग में बच्चों को पाठ्येतर पुस्तकें
पढ़ने के लिए प्रेरित कैसे किया जाए? तो इसके लिए अध्यापकों और
पालकों को अपना रवैया बदलना चाहिए।
सबसे
पहली बात कि कोर्स से इतर किताबों को फालतू समझना और समय की बरबादी समझना बंद हो।
स्कूलों में लाइब्रेरी हो और लाइब्रेरी के पीरियड हों। माता-पिता अपने बच्चों को
अच्छी-अच्छी किताबें खरीद कर दें। जब तक वे छोटे हों उन्हें रोज रात को किताब में
से कहानी पढ़कर सुनाएं जब बच्चा पढ़ने लायक हो तो उसे किताब सौंप दें।
सबसे
बड़ी बात यह होती है कि मां-बाप यदि किताबें पढ़ते हैं, किताबों
की दुनिया में दिलचस्पी रखते हैं, बच्चे बचपन से ही घर के
रैक में किताबें देखते हैं तो उनकी दिलचस्पी इनमें जरूर पैदा होती है। किताबों की
दुनिया में दिलचस्पी होना बहुत बड़ी नियामत है। अपने बच्चों को इससे वंचित ना करें।
अतिरिक्त पठन-पाठन उनकी शैक्षणिक योग्यता और व्यक्तित्व दोनों को ही समृद्ध करेगा।