मोबाइल ने बढ़ाई बच्चों से दूरी
मशहूर बाल विशेषज्ञ शेरी टर्कल का कहना है कि बच्चे को सुख-सुविधा के सारे साधन मुहैया कराने मात्र से अभिभावकों की जिम्मेदारी पूरी नहीं हो जाती है। उसे प्यार, अपनेपन और सुरक्षा का एहसास कराना भी बेहद अहम है। जो मां-बाप इसमें असफल रहते हैं, वे बच्चों से भावनात्मक पक्ष पर नहीं जुड़ पाते हैं। इसके अलावा अकेलेपन और उपेक्षा के एहसास के चलते उनके बच्चे का व्यक्तित्व तथा मानसिक विकास भी प्रभावित होता है।
बच्चों से बातचीत करते वक्त स्मार्टफोन खंगालने में व्यस्त रहते हैं 30 फीसदी अभिभावक
खाना खाते वक्त भी फोन पर टिकी रहती हैं नजरें, ध्यान खींचने को गलतियां करते हैं बच्चे
बावजूद इसके मोबाइल नहीं छोड़ते मां-बाप, बच्चे को झिड़ककर फोन में उलझ जाते हैं दोबारा
अनजाने में बच्चे को अनदेखा या अनसुना करने का ज्यादातर अभिभावकों को नहीं एहसास
मां-बाप अक्सर बच्चों को मोबाइल या कंप्यूटर के ज्यादा इस्तेमाल पर टोकते हैं। वे घर में टीवी देखने और वीडियो गेम खेलने का समय भी निर्धारित करते हैं। लेकिन बात जब खुद पर गैजेट्स के प्रयोग की सीमा तय करने की आती है तो ज्यादातर अभिभावकों पर कोई नियम-कायदे नहीं लागू होते। अमेरिका स्थित बोस्टन यूनिवर्सिटी मेडिकल सेंटर का अध्ययन तो कुछ यही बयां करता है।
शोधकर्ताओं ने गैजेट्स के अत्यधिक इस्तेमाल का पारिवारिक संबंधों पर पड़ने वाला असर जांचा। इसके लिए गुपचुप ढंग से 55 परिवारों में मां-बाप और बच्चों के बीच होने वाले संवाद का विश्लेषण किया। साथ ही यह भी देखा कि दोनों पक्षों के बीच किस तरह के संबंध हैं। वे आपस में कैसे पेश आते हैं। एक-दूसरे का कितना ख्याल रखते हैं। साथ खाना खाते हैं या नहीं। डाइनिंग टेबल पर किस तरह का माहौल होता है। उन्होंने पाया कि बच्चों से बातचीत करते या साथ में खाना खाते समय 30 फीसदी मां-बाप पूरी तरह से मोबाइल में उलझे हुए थे। 16 फीसदी बीच-बीच में स्मार्टफोन निहार रहे थे। शोधकर्ताओं ने यह भी महसूस किया कि अभिभावक जब मोबाइल फोन खंगालने में व्यस्त थे, तब बच्चे उनकी नजर पाने को तरस रहे थे। वे कोई न कोई गलती कर रहे थे, जिससे मां-बाप का ध्यान मोबाइल से हटकर उन पर पड़े।पर मां-बाप मोबाइल किनारे रखने या बंद करने को तैयार नहीं थे। वे या तो बच्चे को झिड़क देते थे या फिर डांटकर शांत करा देते थे।
अकेलेपन और उपेक्षा का पनप रहा अहसास
मशहूर बाल विशेषज्ञ शेरी टर्कल का कहना है कि बच्चे को सुख-सुविधा के सारे साधन मुहैया कराने मात्र से अभिभावकों की जिम्मेदारी पूरी नहीं हो जाती है। उसे प्यार, अपनेपन और सुरक्षा का एहसास कराना भी बेहद अहम है। जो मां-बाप इसमें असफल रहते हैं, वे बच्चों से भावनात्मक पक्ष पर नहीं जुड़ पाते हैं। इसके अलावा अकेलेपन और उपेक्षा के एहसास के चलते उनके बच्चे का व्यक्तित्व तथा मानसिक विकास भी प्रभावित होता है।
वाह रे दीवानगी
बच्चों से बातचीत करते वक्त स्मार्टफोन खंगालने में व्यस्त रहते हैं 30 फीसदी अभिभावक
खाना खाते वक्त भी फोन पर टिकी रहती हैं नजरें, ध्यान खींचने को गलतियां करते हैं बच्चे
बावजूद इसके मोबाइल नहीं छोड़ते मां-बाप, बच्चे को झिड़ककर फोन में उलझ जाते हैं दोबारा
अनजाने में बच्चे को अनदेखा या अनसुना करने का ज्यादातर अभिभावकों को नहीं एहसास
साभार हिंदुस्तान