Tuesday, December 3, 2013


बच्चे को चीखने-चिल्लाने दें

अमृत साधना

घर में जब बच्चे रोते हैं या चीखते हैं, तो बड़े लोग उन्हें या तो डांटते हैं या चुप कराते हैं। दोनों ही बातें गलत हैं, क्योंकि ये दमन सिखाती हैं। भावों का नैसर्गिक रेचन हर व्यक्ति की जरूरत होती है। जैसे शरीर गंदगी का रेचन कर खुद को स्वस्थ, स्वच्छ बनाए रखता है, वैसे ही मन भावों को बाहर फेंककर खुद को हल्का करना चाहता है। मनोवैज्ञानिक कहते हैं कि बच्चे का चीखना, चिल्लाना उसके लिए बहुत लाभदायक है। जो बच्चे चीख-चिल्ला नहीं पाते हैं, तूफान नहीं मचा पाते हैं, वे सदा के लिए मन से रुग्ण हो जाते हैं। यह चीखना, चिल्लाना, बच्चे का रोना एक गहरी प्रक्रिया है। यह दुख-विसर्जन का उपाय है। बच्चा जब दुखी होता है, तो वह उसको सहजता से विसर्जित कर लेता है और फिर बाद में हल्का हो जाता है। ओशो ने एक प्रयोग बताया है, जब बच्चा रो रहा हो, तो न आप उसे डांटें, न उसे थपथपाएं, न समझाएं, शांति से उसके पास बैठे रहें, ध्यानपूर्वक उसको देखते रहें। उसके सिर को थपथपा कर सुलाने की कोशिश न करें, क्योंकि वह भी एक तरकीब है कि वह न रोए, उसे खिलौने भी मत दें, क्योंकि आप रिश्वत दे रहे हैं।

उसका मन भी न हटाएं कि देख, उस दरख्त पर एक सुंदर चिड़िया बैठी है। क्रोध न करें, क्योंकि आपका क्रोध भी बच्चे के लिए दमन हो जाएगा। आप शांत, प्रेमपूर्ण बच्चे पर ध्यान भर देते रहें, तो आप चकित होंगे, एक अनूठा अनुभव आपको होगा कि जब तक आप बच्चे पर प्रेमपूर्वक ध्यान देंगे, वह दिल खोलकर रोएगा, चीखेगा। आप ध्यान देते जाएं और प्रेमपूर्ण बैठे रहें। बच्चा थोड़ी देर रोता रहेगा, चिल्लाएगा, फिर हल्का हो जाएगा, मुस्कराने लगेगा, प्रसन्न हो जाएगा। यह हंसी उसके दुख के विसर्जन से आ रही है। वह जो रोकर, चिल्लाकर उसने फेंक दिया, उससे वह हल्का हो गया।

 साभार हिंदुस्तान

prathamik shikshak

pathak diary